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जनहरण घनाक्षरी

*जनहरण घनाक्षरी*

दरश परस प्रिय,
सुखद सहज हिय,
मगन मदन अति,
तन मन चहके।

अतुल विपुल धन,
खुशमय हर मन,
मचल मचल कर,
मन नित दमके।

मधुर अधर पर,
मधुरिम मधुरिम,
अनुपम निरुपम,
शहद सजन के। 

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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3 Comments

Varsha_Upadhyay

02-Mar-2024 07:37 PM

Nice

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Mohammed urooj khan

02-Mar-2024 11:50 AM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

01-Mar-2024 11:21 PM

👌👏👌🏻

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